श्रीविका शर्मा, आरबीएसके एवं डीईआईसी की त्वरित पहल से गंभीर हृदय रोग पर विजय आयुष्मान भारत योजना से 6 माह की बेटी श्रीविका को मिला नया जीवन

श्रीविका शर्मा, आरबीएसके एवं डीईआईसी की त्वरित पहल से गंभीर हृदय रोग पर विजय आयुष्मान भारत योजना से 6 माह की बेटी श्रीविका को मिला नया जीवन


Junaid khan - शहडोल। रविवार, 14 दिसम्बर 2025,को राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम और जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र लगातार ऐसे बच्चों के जीवन में नई उम्मीद जगा रहे हैं, जो गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे होते हैं। श्रीविका शर्मा, वार्ड क्रमांक 11 शहडोल में रहने वाली नन्हीं बच्ची, स्वास्थ्य विभाग की समय पर की गई कार्यवाही और समर्पित प्रयासों के कारण एक बड़ी संकट से बाहर निकलकर आज स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ रही है। 04 जून 2025 को जन्मी श्रीविका को डाउन सिन्ड्रोम के कारण आरबीएसके टीम द्वारा शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र, शहडोल में पंजीकृत किया गया। प्रारंभिक मूल्यांकन के दौरान डीईआईसी टीम ने बच्ची की स्थिति को गंभीरता से देखते हुए विस्तृत चिकित्सीय परीक्षण कराने की सलाह दी। इसी दौरान शिविर में किए गए हृदय परीक्षण में पता चला कि श्रीविका को गंभीर ब्वदहमदपजंस भ्मंतज क्पेमंेम (सीएचडी) है, एक ऐसी स्थिति जो समय पर उपचार न मिले तो जीवन के लिए खतरा बन सकती थी। गंभीर स्थिति की जानकारी मिलते ही जिला शीघ्र हस्तक्षेप प्रबंधक सुश्री कंचन पटेल ने तत्काल रिपोर्ट मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश मिश्रा को दी। मामले की गंभीरता को समझते हुए सीएमएचओ ने बिना विलंब बच्ची को आपातकालीन आधार पर एसआरसीसी अस्पताल, मुंबई रेफर किया। मुंबई में विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने अत्यंत जटिल हृदय सर्जरी सफलतापूर्वक की। यह संपूर्ण उपचार आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत निःशुल्क प्रदान किया गया जिससे परिवार पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ा। 2 दिसंबर को, सफल उपचार और सुधार के बाद श्रीविका अपने घर वापस लौटी। उसके परिजनों के चेहरों पर मुस्कान और बच्चे के स्वस्थ होने की खुशी देखने लायक थी। यह केवल एक परिवार की राहत नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की प्रभावी रेफरल प्रणाली, त्वरित निर्णय क्षमता और टीमवर्क का सशक्त उदाहरण है। अब डीईआईसी शहडोल द्वारा श्रीविका को नियमित थेरेपी दी जाएगी, जिससे उसके संपूर्ण विकास, शारीरिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक कौशल और स्वास्थ्य का निरंतर मूल्यांकन हो सके। श्रीविका की यह कहानी साबित करती है कि जब व्यवस्था तत्पर हो, टीम समर्पित हो और सेवाएँ सुलभ हों, तो गंभीर से गंभीर बीमारी भी मात खा जाती है।

Previous Post Next Post