बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री हाजिर हों,शहडोल जिला अदालत का नोटिस

पं.धीरेंद्र शास्त्री को शहडोल कोर्ट का सम्मन,महाकुंभ में न आने वाला देशद्रोही बयान बना आफत


Junaid khan - शहडोल। देशभर में चर्चित कथावाचक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री एक बार फिर अपने बयान को लेकर विवादों में घिर गए हैं। महाकुंभ 2025 के दौरान प्रयागराज में दिया गया उनका बयान महाकुंभ में हर व्यक्ति को आना चाहिए, जो नहीं आएगा वह पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा अब उन्हें कोर्ट तक ले आया है। शहडोल की एक अदालत ने इस बयान को असंवैधानिक और भडकाऊ बताते हुए शाखी को नोटिस जारी किया है। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी शहडोल ने उन्हें 20 मई 2025 को सुबह 11 बजे न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया है। शास्त्री के इस बयान ने कई संवेदनशील सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सीमाओं की रक्षा में तैनात सैनिक, अस्पतालों में सेवा दे रहे डॉक्टर, कानून-व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी या न्यायपालिका के सदस्य जो ड्यूटी पर हैं। महाकुंभ में न आ पाने के कारण देशद्रोही कहलाएंगे, यह सवाल सिर्फ व्यंग्यात्मक नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान की आत्मा को झकझोर देने वाला है। पूव शासकीय अधिवक्ता और अधिवक्ता संघ शहडोल के पूर्व अध्यक्ष संदीप कुमार तिवारी ने इस बयान पर आपत्ति जताते हुए पहले थाना सोहागपुर में शिकायत दी थी, पुलिस कार्रवाई न होने पर मामला पुलिस अधीक्षक तक पहुँचा और अंततः 3 मार्च 2025 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी शहडोल के समक्ष आपराधिक परिवाद दाखिल किया गया, अब अदालत की सक्रियता ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई की दिशा में बढ़ा दिया है। श्री तिवारी का कहना है,अगर सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के लिए एफआईआर हो सकती है, तो सार्वजनिक मंच से भडकाऊ बयान देने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं, सीधी जिले में कथावाचक के खिलाफ टिप्पणी करने पर एफआईआर दर्ज होना तो तत्काल हो गया, लेकिन स्वयं शास्त्री के बयान पर चुप्पी यह दोहरे मापदंड की ओर इशारा करता है। श्री तिवारी ने बयान की आलोचना करते हुए कहा, देशभक्ति का मूल्यांकन धार्मिक आयोजनों में भागीदारी से नहीं, बल्कि कर्तव्यों और संविधान के प्रति निष्ठा से होता है। उनका मानना है कि यह बयान सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा देने वाला है और भारत की धर्मनिरपेक्ष आत्मा के खिलाफ जाता है। यह मामला अब सिर्फ एक कथावाचक के बयान का नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके दायरे, संविधान की गरिमा, और कानून की निष्पक्षता का परीक्षण बन चुका है। क्या अदालत इस बयान को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानेगी या उसे दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखेगी, इसका निर्णय 20 मई की सुनवाई में स्पष्ट होगा।

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