हथवार प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट एवं बैगा संस्कृति का आकर्षक केंद्र

प्रकृति सौदर्य से परिपूर्ण कैम्प बनास की दो पर्यावरण मित्रो ने बदली ग्रामीण पर्यटन की तस्वीर




Junaid khan - शहडोल। 28 दिसम्बर 2025- वर्तमान समय में जहाँ युवा बेहतर भविष्य के लिए महानगरों की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं दो युवा उद्यमियों, शहडोल के तहसील ब्यौहारी स्थिति ग्राम हथवार निवासी पर्यावरण मित्र रामकेश पटेल एवं सागर दास ने पर्यावरण की दिशा में मिसाल पेश की है जो रिवर्स माइग्रेशन और आत्मनिर्भर भारत का जीवंत उदाहरण है। पर्यावरण मित्र आईआईटी (बीएचयू) वाराणसी के इन्क्यूबेशन सेंटर से समर्थित अपने स्टार्टअप रोज़हब चलाने वाले उन्होंने वर्ष 2020 के लॉकडाउन के दौरान अहम फैसला लिया और शहडोल जिले के सुदूर गाँव हथवार को अपनी कर्मभूमि बनाया।


महामारी से मिली नई राह वाराणसी से हथवार तक (गंगा से बनास तक), बनारस से बनास तक रोज़हब स्टार्टअप मंत्रालयों और सरकारी संस्थाओं के लिए डिजिटल मीडिया और एजुकेशनल कंटेंट बनाने का काम करता है। मार्च 2020 में लॉकडाउन की वजह से जब ऑफिस तक पहुंच बंद हुई, तब एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट के दौरान पर्यावरण मित्रो का परिचय मध्य भारत की प्राकृतिक सुंदरता से हुआ। इसी अनुभव ने उन्हें विंध्याचल की प्राचीन पहाड़ियों और बनास नदी के तट पर स्थित गांव हथवार तक पहुँचाया।


हथवार जहाँ समय ठहर सा जाता है हथवार गाँव कोई साधारण भौगोलिक स्थान नहीं है। यह भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला विंध्याचल की गोद में बसा है। यहाँ की विशेषताएँ इसे पर्यटन का स्वर्ग बनाती हैं। बनास नदी का सानिध्य गाँव के किनारे बहती बनास नदी और उसके रेतीले तट शांति का अहसास कराते हैं। एनिग्मेटिक जंगल यहाँ के घने जंगल दुर्लभ वन्यजीवों, पक्षियों और प्राचीन पेड़ों का घर हैं। बैगा बस्ती में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा का सरल एवं सहज जीवन हथवार की सबसे बड़ी खूबसूरती है। प्रकृति के साथ उनका गहरा जुड़ाव आने वाले पर्यटकों के लिए एक आत्मिक अनुभव बन जाता है।


बनास नदी- इस पूरे प्रोजेक्ट की आत्मा यहाँ बहती बनास नदी है। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि इस अंचल की जीवनधारा है। संजय टाइगर रिजर्व का उपहार बनास नदी संजय टाइगर रिजर्व के घने और सुरक्षित जंगलों से बहकर आती है, यही कारण है कि इसका पानी अत्यंत शुद्ध और वातावरण जादुई है। आगे चलकर बनास नदी भंवर सेन नामक स्थान पर प्रसिद्ध सोन नदी में मिल जाती है। सोन की प्रमुख सहायक नदी होने के कारण इसका भौगोलिक महत्व और भी बढ़ जाता है। प्रवासी पक्षियों का बसेरा- सर्दियों के मौसम में बनास नदी का शांत तट और स्वच्छ पानी दूर-दराज के प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ के आकाश में दुर्लभ स्थानीय और विदेशी पक्षियों की चहचहाहट प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होती।


कैम्प बनास ईको और ग्रामीण टूरिज्म का नया मॉडल- मध्य प्रदेश टूरिज्म की ग्राम स्टे योजना से प्रेरित होकर रामकेश पटेल एवं सागर दास ने कैम्प बनास की नींव रखी। 5 एकड़ में फैला यह परिसर अब केवल एक स्टूडियो या ऑफिस नहीं, बल्कि सस्टेनेबल टूरिज्म का केंद्र है। यहाँ आने वाले पर्यटक न केवल कंक्रीट के जंगलों से दूर क्वारंटाइन लाइवलीहुड का आनंद लेते हैं, बल्कि स्थानीय किसानों और चरवाहों की जीवनशैली को भी करीब से साझा करते हैं।


सस्टेनेबिलिटी और स्थानीय रोज़गार- रामकेश और सागर का उद्देश्य केवल अपना काम करना ही नहीं, बल्कि स्थानीय समुदाय को सशक्त बनाना भी है। उन्होंने सस्टेनेबिलिटी (सतत विकास) को केंद्र में रखकर रोज़गार के नए आयाम विकसित किए हैं। महुआ के लड्डू स्थानीय उपज महुआ को एक पौष्टिक ब्रांड के रूप में पहचान दिलाना, बांस शिल्प पारंपरिक बांस की टोपियों और हस्तशिल्प को बाज़ार उपलब्ध कराना, रिवर्स माइग्रेशनरूआधुनिक डिजिटल वर्क और स्टूडियो सुविधाओं को गाँव में स्थापित कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि रचनात्मकता के लिए शहरों की भीड़ अनिवार्य नहीं है। एक मज़बूत टीम सफलता के असली स्तंभ- इस पूरे प्रोजेक्ट की सफलता के पीछे केवल विचार नहीं, बल्कि एक कर्मठ टीम की मेहनत है। रामकेश और सागर के इस विज़न को धरातल पर उतारने मेंकुबेर पटेल, नीलेश रैकवार, पिंकी रैकवार, रचना पटेल और प्रांजलि पटेल जैसे सदस्य भरपूर सहयोग कर रहे हैं। टीम के ये सदस्य न केवल कैम्प के संचालन में मदद करते हैं, बल्कि स्थानीय समुदाय और पर्यटकों के बीच एक सेतु का काम भी कर रहे हैं।


हथवार की संकरी गलियाँ, जो सीधे जंगलों में जाकर खुलती हैं, अब विकास की नई राह दिखा रही हैं। कैम्प बनास उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शिका है जो प्रकृति के संरक्षण के साथ आर्थिक प्रगति का सपना देखते हैं। यहाँ की शांति में विंध्याचल की गूँज और बैगा संस्कृति की सादगी मिलकर एक नए भारत की तस्वीर पेश कर रही है।

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