अस्पताल में डॉक्टर ग़ायब, CPR भी नहीं कमलेश जैन की मौत के बाद भड़के परिजन,लिखित शिकायत
स्वास्थ्य तंत्र या व्यवसायिक जंगलतंत्र? शहडोल में अस्पतालों की रात की ड्यूटी पर बड़े सवाल
Junaid khan - शहडोल। मध्यप्रदेश का स्वास्थ्य ढाँचा इन दिनों एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहाँ मरीज अपनी जान अस्पताल को सौंपते हैं और अस्पताल जवाब में डॉक्टर आएँ या न आएँ जो मिलेगा वही इलाज करेगा” जैसी व्यवस्था दे रहे हैं। देवंता अस्पताल विवाद की राख अभी ठंडी नहीं पड़ी थी, लेकिन अब शहर के पाली रोड स्थित श्रीराम अस्पताल पर लगे आरोपों ने शहडोल के निजी स्वास्थ्य बाजार की सच्चाई उजागर कर दी है। लाइसेंस डॉक्टरों के नाम पर, काम वार्ड बॉय और स्टाफ के भरोसे।16 दिसंबर की रात 11.30 बजे, गुरुनानक चौक निवासी कमलेश जैन को गंभीर हालत में अस्पताल पहुँचाया गया। परिजन एम्बुलेंस और ऑक्सीजन की दहशत भरी भागमभाग के बाद उम्मीद लेकर इमरजेंसी में घुसे उन्हें लगा कि अब मशीनें चलेंगी, CPR शुरू होगा, डॉक्टर दौड़ पड़ेंगे। लेकिन परिजनों के अनुसार वहाँ जो मिला, वह था एक युवक, जिसने खुद को डॉक्टर बताकर तुरन्त इंजेक्शन थमा दिया,और एक महिला स्टाफ, जो चुपचाप पर्ची पर दवाइयाँ लिखती गई। लोग पूछते रह गये। डॉक्टर कहाँ है?”ICU का प्रभारी कौन?”
“CPR कौन देगा?”और जवाब मिला सन्नाटा।
परिजनों का आरोप
कि मरीज की साँसें फूल रही थीं, धड़कन अनियंत्रित हो रही थी, लेकिन CPR की कोशिश तक नहीं की गई। मिनट बीतते गए, और चिकित्सा शब्दकोश की सबसे अहम प्रक्रिया कार्डियो पल्मनरी रिससिटेशन एक दूर का विज्ञान बनकर रह गई। कुछ देर बाद कमलेश जैन ने दम तोड़ दिया। हैरानी की बात यह है कि अस्पताल की ओर से न किसी डॉक्टर का चेहरे पर आना दर्ज हुआ, न परिवार से कोई संवाद।
ग़ुस्साए परिजन जब अस्पताल प्रबंधन तक पहुँचे, तो उनके हिस्से आया “जांच होगी” जैसा वह जवाब, जो पूरे प्रदेश में लापरवाही का ढाल बन चुका है। परिजन इसके बाद सीधे कोतवाली पहुँचे। लिखित शिकायत दी गई कि
इमरजेंसी में डॉक्टर नहीं था
इलाज वार्ड बॉय व स्टाफ ने किया
समय पर CPR नहीं दिया गया
मेडिकल प्रोटोकॉल तोड़ा गया
पुलिस ने जांच शुरू कर दी है।
लेकिन सवाल सिर्फ एक शिकायत का नहीं है। सवाल यह है कि क्या शहडोल में मौत की जांच कागज़ पर होती रहेगी, और अस्पताल मुनाफे में? शहर के जानकार कह रहे हैं कि निजी अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता रात में अक्सर नाममात्र होती है। लेकिन बिल VIP दर पर वसूला जाता है। उपकरण खरीद लिए जाते हैं, लेकिन प्रशिक्षित हाथ नहीं रखे जाते। सबसे बड़ा तंज यह है कि अस्पतालों में मरीज भर्ती होने से ज़्यादा, डॉक्टरों के नाम बोर्ड पर टंगे मिलते हैं। और प्रदेश का कटाक्ष यह अगर डॉक्टर का नाम काफी है, तो वार्ड बॉय को ही सर्जरी भी क्यों न सौंप दी जाए?”
जो जिला स्वास्थ्य मंत्री के प्रभार में हो,और वहाँ ऐसे मामले सामने आएँ यह न सिर्फ प्रशासन की जिम्मेदारी पर चोट है, बल्कि इस प्रश्न को जन्म देता है कि क्या स्वास्थ्य व्यवस्था नियंत्रण में है, या अब यह व्यवसायिक जंगलतंत्र में बदल चुकी है? आज शहर में चर्चा सिर्फ यह नहीं कि श्रीराम अस्पताल में क्या हुआ चर्चा यह भी कि देवंता और श्रीराम जैसे नाम आने के बाद प्रशासन कितनी देर तक सिर्फ बयान देगा। लोग खुले शब्दों में कह रहे हैं अगर इस बार भी शो-कॉज नोटिस और बयान की औपचारिकता में मामला दब गयातो अगला शिकार कौन?”और यही शंका जनता की बेचैनी बढ़ा रही है। शहडोल का निजी स्वास्थ्य तंत्र उपचार नहीं, भाग्य पर दाँव बनता जा रहा है। जहाँ मरीज की जान, स्टाफ की समझ और डॉक्टर की अनुपस्थिति के समीकरण पर चलती है। अब निगाहें इस बात पर होंगी कि अस्पताल प्रबंधन कोई जवाब देता है या नहीं डॉक्टर उस रात कहाँ थे क्या वार्ड बॉय ने प्रोटोकॉल के बाहर जाकर इलाज किया और क्या जिला प्रशासन पहली बार दिखावे से आगे बढ़कर कड़ाई करेगा क्योंकि शहर यह मान चुका है अगर अस्पताल व्यापार” है, तो हर मौत उसकी जिम्मेदारी बनेगी। और अगर प्रशासन निगरानी” है, तो अब बहाने नहीं चलेंगे।
जल्दी होंगे और खुलासे,पुलिस ने आगे की क्या कार्यवाही की,अस्पताल प्रबंधक,संचालक,मालिक,का क्या कहना है-अगले शेष अंक में...


